शादी का लड्डू

शादी का लड्डू


अच्छा था जब थे कुंवारे
सर पे ना था कोई बोझ हमारे
अब दिन रात बीवी की सुनते रहते
वो गुर्राती है हम मैं मैं करते रहते
फिरते थे जो कभी जंगल में बन के शेर
जब से हुई है शादी मिल गई सवासेर
अब तो घास खा के काम चला रहा हूं
बीवी जो कहे हुकम बजा रहा हूं
अगर वो कहे तो लोहे के चने भी चबा लूंगा
शादी का खाया है लड्डू, हंसते रोते निभा लूंगा।।

आभार – नवीन पहल – ०२.०९.२०२२😂😂

# प्रतियोगिता हेतु 


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9 Comments

Satvinder Singh

13-Sep-2022 12:02 PM

🤣🤣🤣👍

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Seema Priyadarshini sahay

03-Sep-2022 02:06 PM

बहुत बेहतरीन रचना

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Abhinav ji

03-Sep-2022 09:07 AM

Very nice👍

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